In this post, all of you will get information about Ishwar Chandra Vidyasagar stories and Ishwar Chandra Vidyasagar quotes.
नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं ishwar chandra vidyasagar जी के बारे में दोस्तों अगर आप उत्तर प्रदेश से हैं तो आपने ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के बारे में कक्षा 6 के अध्याय 27 में इनके बारे में जरूर आना होगा अगर आपकी सभी लोगों ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के बारे में नहीं पढ़ा है तो आज मैं आप सभी को इन्हें के जीवन की कुछ महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहा हूं जो कि शायद आप सभी को नहीं पता हो तो चलिए शुरू करते हैं
जन्म - 26 सितम्बर 1820 Birsingha, Bengal Presidency, British India
(now in West Bengal, India)
मृत्यु - 29 जुलाई 1891 (उम्र 70)
Calcutta, Bengal Presidency, British India
(now Kolkata, West Bengal, India)
व्यवसाय - Writer, philosopher, scholar, educator, translator, publisher, reformer, philanthropist
भाषा - Bengali
राष्ट्रीयता - Indian
उच्च शिक्षा - Sanskrit College (1828-1839)
साहित्यिक आन्दोलन - बंगाल का पुनर्जागरण
जीवनसाथी - Dinamani Devi
सन्तान - Narayan Chandra Bandyopadhyaya
सम्बन्धी - Thakurdas Bandyopadhya (father)
Bhagavati Devi (mother)
अगर हम बात करें ishwar chandra vidyasagar Stories के बारे में तो इनके परिवार के हालात ठीक नहीं थे यह बहुत ही गरीब घर से थे तथा इनके पढ़ाने के लिए पैसे तक भी नहीं थे परंतु इसके बाद भी उन्होंने ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को पढ़ने के लिए कलकत्ता भेजा कोलकाता जाने के बाद ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने यहां पर आकर संस्कृत विद्यालय में दाखिला ले लिया
जी तो वह पढ़ने में इतनी तेज थी कि उन्हें कई स्कॉलरशिप भी मिली जिससे कि उनकी आर्थिक हालत कुछ हद तक सुधरी थी
1841 मैं वह फोर्ट विलियम कॉलेज के प्रमुख बने और इसी दौरान उन्होंने देखा की स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय है उन्होंने स्त्रियों के प्रति उनके बारे में गंभीरता से सोचना शुरू किया इसके लिए उन्होंने कई नारी शिक्षा विद्यालय खोलें दोस्तों आपको एक बात बता दें कि ishwar chandra vidyasagar नारी शिक्षा के बहुत बड़े प्रचारक थे और मैं भी चाहते थे कि सभी नारी शिक्षा प्राप्त करें सभी नारी को शिक्षा का हक है इसीलिए हमने कुछ विद्यालय भी खोले जहां पर लड़कियां जाकर शिक्षा प्राप्त कर सकती थी
दोस्तो ishwar chandra vidyasagar विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए इस प्रकार समर्थक थे कि उन्होंने अपने बेटे का विवाह भी एक विधवा औरत से ही करवाया
1891 में ईश्वर चंद्र विद्यासागर का निधन हो गया उनके बारे में रविंद्र नाथ टैगोर ने यह कहां की भगवान ने अच्छे लोग तो बहुत पैदा किया लेकिन बंगाल में ईश्वर चंद्र जैसा व्यक्ति एक ही था
बात उन दिनों की है जब ईश्वर चंद्र विद्यासागर संस्कृत कॉलेज में पढ़ते थे एक बार किसी काम की वजह से उन्हें दूसरे कॉलेज में जाना पड़ा उस कॉलेज में एक अंग्रेज प्रोफेसर से उन्हें मिलना था जैसे ही वह प्रोफेसर से अंदर मिलने गए तो उन्होंने देखा कि अंग्रेज प्रोफेसर जूते पहने टेबल पर पैर रखकर बैठे हैं यह उन्हें बहुत अप्रिय लगा मैं अपना काम निपटा कर वापस आ गए फिर एक बार अंग्रेज प्रोफेसर को ईश्वर चंद्र जी से मिलना था और जैसे ही मैं विद्यासागर पहुंचे तो देखते हैं विद्यासागर जी अपनी कुर्सी पर बैठे हैं पांव मेज़ पर रखे हैं पैरों में चप्पल पहने हुए हैं अंग्रेज प्रोफेसर बेइज्जती महसूस करते हुए और तथा अपमानित महसूस होते हुए अपने काम को निपटा कर वापस चले गए और उन्होंने इस मामले की शिकायत कर दी एक बड़े अधिकारी से जब अधिकारी में विद्यासागर जी से बातचीत की विद्यासागर जी ने कहा कि हम सब लोग अंग्रेजों से ही शिष्टाचार सीखते हैं जब मैं इनके यहां पहुंचा तो इन्होंने जूते पहने हुए थे मैंने भी इनके साथ ऐसा ही किया इतना सुनकर अंग्रेज प्रोफेसर काफी शर्मिंदा हुए और विद्यासागर जी से माफी मांगी
एक बात और बताता हूं जो कि इनकी दानवीरता से संबंधित है जो इनकी बड़े दिल से संबंधित है ईश्वर चंद्र जी को तनखा अच्छी मिलती थी लेकिन मैं अपनी तनख्वाह का 1% भाग ही अपने परिवार पर खर्च करते थे बाकी का वह गरीबों और जरूरतमंदों पर खर्च कर देते थे 1 दिन बाजार में उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति भीख मांग रहा है उन्होंने उसे 1 पैसा दे दिया और पूछा तुम इतने हट्टे कट्टे हो फिर भीक क्यों मांग रहे हो भिखारी ने कहा अगर मुझे ज्यादा पैसे मिल जाए तो में कारोबार शुरू कर दूंगा विद्यासागर जी ने अपने जेब से ₹1 निकाला और उस भिखारी को दे दिया उन दिनों 1 रुपए काफी ज्यादा अहमियत रखता था एक बार वह बाजार से निकल रहे थे तो देखते हैं एक दुकान से कटा कटा आदमी बाहर निकला और उनके चरणों पर गिर गया यह वही लड़का था जिसे कुछ दिनों पहले विद्यासागर जी ने ₹1 दिया था
तो दोस्तों फिलहाल आज की पोस्ट में इतना है अगर आप और बाकी किसी भी नेक दिल इंसान के बारे में जानकारी जाते हैं तो कृपया कमेंट करें
नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं ishwar chandra vidyasagar जी के बारे में दोस्तों अगर आप उत्तर प्रदेश से हैं तो आपने ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के बारे में कक्षा 6 के अध्याय 27 में इनके बारे में जरूर आना होगा अगर आपकी सभी लोगों ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के बारे में नहीं पढ़ा है तो आज मैं आप सभी को इन्हें के जीवन की कुछ महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहा हूं जो कि शायद आप सभी को नहीं पता हो तो चलिए शुरू करते हैं
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Ishwar Chandra Vidyasagar stories Hindi |
जन्म - 26 सितम्बर 1820 Birsingha, Bengal Presidency, British India
(now in West Bengal, India)
मृत्यु - 29 जुलाई 1891 (उम्र 70)
Calcutta, Bengal Presidency, British India
(now Kolkata, West Bengal, India)
व्यवसाय - Writer, philosopher, scholar, educator, translator, publisher, reformer, philanthropist
भाषा - Bengali
राष्ट्रीयता - Indian
उच्च शिक्षा - Sanskrit College (1828-1839)
साहित्यिक आन्दोलन - बंगाल का पुनर्जागरण
जीवनसाथी - Dinamani Devi
सन्तान - Narayan Chandra Bandyopadhyaya
सम्बन्धी - Thakurdas Bandyopadhya (father)
Bhagavati Devi (mother)
Ishwar Chandra Vidyasagar stories
अगर हम बात करें ishwar chandra vidyasagar Stories के बारे में तो इनके परिवार के हालात ठीक नहीं थे यह बहुत ही गरीब घर से थे तथा इनके पढ़ाने के लिए पैसे तक भी नहीं थे परंतु इसके बाद भी उन्होंने ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को पढ़ने के लिए कलकत्ता भेजा कोलकाता जाने के बाद ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने यहां पर आकर संस्कृत विद्यालय में दाखिला ले लिया
जी तो वह पढ़ने में इतनी तेज थी कि उन्हें कई स्कॉलरशिप भी मिली जिससे कि उनकी आर्थिक हालत कुछ हद तक सुधरी थी
1841 मैं वह फोर्ट विलियम कॉलेज के प्रमुख बने और इसी दौरान उन्होंने देखा की स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय है उन्होंने स्त्रियों के प्रति उनके बारे में गंभीरता से सोचना शुरू किया इसके लिए उन्होंने कई नारी शिक्षा विद्यालय खोलें दोस्तों आपको एक बात बता दें कि ishwar chandra vidyasagar नारी शिक्षा के बहुत बड़े प्रचारक थे और मैं भी चाहते थे कि सभी नारी शिक्षा प्राप्त करें सभी नारी को शिक्षा का हक है इसीलिए हमने कुछ विद्यालय भी खोले जहां पर लड़कियां जाकर शिक्षा प्राप्त कर सकती थी
Ishwar Chandra Vidyasagar stories
1851 मैं बे संस्कृत कॉलेज में प्रोफेसर बने उन्होंने देखा कि महिलाओं का जीवन जीना दूभर होता जा रहा है उन्होंने महिलाओं के पुनर्विवाह को लेकर कई जन आंदोलन चलाएं ताकि वह भी समाज में एक अच्छा जीवन जी सकें विधवा विवाह के संसाधनों में बहु विवाह पर भी चोट किया पुरुष एक महिला से भी ज्यादा महिलाओं से शादी कर लिया करते थे इस प्रकार स्त्रियों का शोषण हुआ करता था इस प्रकार उन्होंने आगे चलकर 1856 मैं विधवा पुनर्विवाह एक्ट पारित हुआ और यह ईश्वर की एक सबसे बड़ी जीत थी विधवाओं को उनका हक दिलाना विद्यासागर के लिए कभी आसान नहीं था बैलेट लिखते सेमिनार करते भाषण देते हैं लेकिन हर बार सनातन धर्म के ठेकेदार उनकी बातों को कुरान कि बात कर काट देते ईश्वर चंद्र विद्यासागर विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए समर्थक थेदोस्तो ishwar chandra vidyasagar विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए इस प्रकार समर्थक थे कि उन्होंने अपने बेटे का विवाह भी एक विधवा औरत से ही करवाया
1891 में ईश्वर चंद्र विद्यासागर का निधन हो गया उनके बारे में रविंद्र नाथ टैगोर ने यह कहां की भगवान ने अच्छे लोग तो बहुत पैदा किया लेकिन बंगाल में ईश्वर चंद्र जैसा व्यक्ति एक ही था
Ishwar Chandra Vidyasagar quotes
यह भी जानिए
ऐसा क्या हुआ कि ईश्वर चंद्र अपनी मां के सोने के कंगन एक गरीब महिला को देने की जिद करने लगे
दोस्तों यह किस्सा सुनकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे दरअसल ऐसा हुआ कि ईश्वर चंद्र उस समय काफी छोटे थे एक दिन उनके घर एक गरीब महिला आई और बाहर आवाज देने लगी कि बेटा कुछ दे दे उसकी आवाज सुनकर ईश्वर चंद्र ने अपनी मां से कहा मां मुझे आपके दोनों हाथों के कंगन दे दो उस महिला को यह कंगन देना चाहता हूं तो उनकी मां ने उनकी बात को सुन कर कहा बेटा उस महिला को कुछ खाने का सामान दे दे सोने के कंगन देने की क्या जरूरत है ई
ईश्वर चंद्र विद्यासागर बोले वह बहुत गरीब है और मुझे लगता है उसे इसकी जरूरत है ईश्वर चंद्र इस बात की जिद करने लगे और उनकी जिद की वजह से उनकी मां ने ishwar chandra vidyasagar को बह कंगन दे दिए और ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने वह दोनों सोने के कंगन उस गरीब महिला को दे दिए
दोस्तों अब इस बात को हफ्तों महीनों सालों बीत गए थे और अब तक ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक विद्वान टीचर बन चुके थे मैं अपने घर आए और अपनी माता से कहा मां मुझे अपने दोनों हाथों का नाप दें मुझे अपना बचपन में किया हुआ वादा याद है मैं तुम्हारे लिए कंगन लेकर आऊंगा
उनकी मां ने कहा बेटा मैं बहुत बूढ़ी हो चुकी हूं अब मुझ पर यह कंगन शोभा नहीं देते तू एक काम कर बहुत सारे गरीब बच्चे हैं जो कि शिक्षा नहीं ले पाते हैं तो उनके लिए विद्यालयों का निर्माण करो और उनमें सभी गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करो दोस्तों ऐसे जवाब की आशा ईश्वर चंद्र के माता से ही कर सकते हैं।
दोस्तों अब इस बात को हफ्तों महीनों सालों बीत गए थे और अब तक ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक विद्वान टीचर बन चुके थे मैं अपने घर आए और अपनी माता से कहा मां मुझे अपने दोनों हाथों का नाप दें मुझे अपना बचपन में किया हुआ वादा याद है मैं तुम्हारे लिए कंगन लेकर आऊंगा
उनकी मां ने कहा बेटा मैं बहुत बूढ़ी हो चुकी हूं अब मुझ पर यह कंगन शोभा नहीं देते तू एक काम कर बहुत सारे गरीब बच्चे हैं जो कि शिक्षा नहीं ले पाते हैं तो उनके लिए विद्यालयों का निर्माण करो और उनमें सभी गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करो दोस्तों ऐसे जवाब की आशा ईश्वर चंद्र के माता से ही कर सकते हैं।
Ishwar Chandra Vidyasagar stories
यह भी जाने
तो कैसे ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने एक अंग्रेज प्रोफेसर को शिष्टाचार का पाठ पढ़ाया और उसे अच्छी तरह से जलील कियाबात उन दिनों की है जब ईश्वर चंद्र विद्यासागर संस्कृत कॉलेज में पढ़ते थे एक बार किसी काम की वजह से उन्हें दूसरे कॉलेज में जाना पड़ा उस कॉलेज में एक अंग्रेज प्रोफेसर से उन्हें मिलना था जैसे ही वह प्रोफेसर से अंदर मिलने गए तो उन्होंने देखा कि अंग्रेज प्रोफेसर जूते पहने टेबल पर पैर रखकर बैठे हैं यह उन्हें बहुत अप्रिय लगा मैं अपना काम निपटा कर वापस आ गए फिर एक बार अंग्रेज प्रोफेसर को ईश्वर चंद्र जी से मिलना था और जैसे ही मैं विद्यासागर पहुंचे तो देखते हैं विद्यासागर जी अपनी कुर्सी पर बैठे हैं पांव मेज़ पर रखे हैं पैरों में चप्पल पहने हुए हैं अंग्रेज प्रोफेसर बेइज्जती महसूस करते हुए और तथा अपमानित महसूस होते हुए अपने काम को निपटा कर वापस चले गए और उन्होंने इस मामले की शिकायत कर दी एक बड़े अधिकारी से जब अधिकारी में विद्यासागर जी से बातचीत की विद्यासागर जी ने कहा कि हम सब लोग अंग्रेजों से ही शिष्टाचार सीखते हैं जब मैं इनके यहां पहुंचा तो इन्होंने जूते पहने हुए थे मैंने भी इनके साथ ऐसा ही किया इतना सुनकर अंग्रेज प्रोफेसर काफी शर्मिंदा हुए और विद्यासागर जी से माफी मांगी
Ishwar Chandra Vidyasagar stories
एक बात और बताता हूं जो कि इनकी दानवीरता से संबंधित है जो इनकी बड़े दिल से संबंधित है ईश्वर चंद्र जी को तनखा अच्छी मिलती थी लेकिन मैं अपनी तनख्वाह का 1% भाग ही अपने परिवार पर खर्च करते थे बाकी का वह गरीबों और जरूरतमंदों पर खर्च कर देते थे 1 दिन बाजार में उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति भीख मांग रहा है उन्होंने उसे 1 पैसा दे दिया और पूछा तुम इतने हट्टे कट्टे हो फिर भीक क्यों मांग रहे हो भिखारी ने कहा अगर मुझे ज्यादा पैसे मिल जाए तो में कारोबार शुरू कर दूंगा विद्यासागर जी ने अपने जेब से ₹1 निकाला और उस भिखारी को दे दिया उन दिनों 1 रुपए काफी ज्यादा अहमियत रखता था एक बार वह बाजार से निकल रहे थे तो देखते हैं एक दुकान से कटा कटा आदमी बाहर निकला और उनके चरणों पर गिर गया यह वही लड़का था जिसे कुछ दिनों पहले विद्यासागर जी ने ₹1 दिया था
तो दोस्तों फिलहाल आज की पोस्ट में इतना है अगर आप और बाकी किसी भी नेक दिल इंसान के बारे में जानकारी जाते हैं तो कृपया कमेंट करें
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